Sep 8, 2007

ईशप का गधा विख्यात कवि रितुराज की नयी कविता है।
उनकी एक और नयी कविता देखिये


देर रात का प्यार

तेज गति से दौडती गाडियो के शोर मे

मैने उसे पुकारा

पहले खिड्की से झान्का

बिजली जली थी भीतर

शून्य मे लिप्त अन्धेरा था आन्गन मे

हम छिप गये पाप करने के अकेलेपन मे

रोशनी बुझा दी गयी थी

दो कछुओ की तरह हम सम्हल-सम्हल कर

बढ रहे थे एक दूसरे की ओर

सान्स के तार मिलाते

सभी दौडती गाडिया बहुत दूर निकल चुकी थी

एक जो खडी थी उसने सीटी मारी

जैसे हमारा इन्तज़ार कर रही हो


उस समय दो यात्री अन्तरिक्छ मे

उपग्रह से बाहर निकल कर विचरण कर रहे थे

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